जब जब महकती ये यादें तुम्हारी हैं - Hindi Kavita By Ashish Awasthi


अब मिलता नहीं, जो आंसू छुपा के रखा था कहीं
ना ही वो जिंदगी जो तन्हा गुज़ारी है 

ना ही वो बातें जो तुम करती थी कभी
ना ही वो सपने जो तुमने दिखाए थे
ना ही वो बारिश जिसमे भीगे थे साथ
ना ही वो खत जो तुमने छुपाये थे

ना वो ही वो ख़्वाब जो छत में टहलते थे
ना ही वो रातें जो जागते गुज़ारी है



ना ही वो वक़्त जो गुजरा था बाँहों में
ना ही वो फूल जो बिछे थे राहों में
ना ही वो रास्ता जिससे गुजरते थे हम
ना ही वो दिन जब आयी थी पनाहों में

ना ही वो बादल ,घटा, सावन, वो बूंदे
ना ही वो जुल्फें जो उलझी तुम्हारी हैं

घूमता हूँ कभी जब उस पुरानी सड़क पे
कुछ सतरंगी कुछ स्याह रंगो के साथ
महकता रहता हूँ याद करके मैं भी
जब जब महकती ये यादें तुम्हारी हैं


रास्ता मैं बतलाता हूँ - Hindi Poem By Ashish Awasthi


राहों के पत्थर देखे इतने
के अब नहीं संभल पाता हूँ

अपने पीछे चलते चलते
खुद से दूर निकल जाता हूँ

अब तो कोई रोक लो आके
मैं लीक तोड़ कर जाता हूँ

फिर न कहना, के कहा नहीं ?
सब पहले से बतलाता हूँ

झूमो तुम सब मैखाने जाकर
आओ ,रास्ता मैं बतलाता हूँ।।


मजदूर नहीं तो कुछ नहीं (Majdoor Diwas Par Vishesh) - Hindi Poem By Ashish Awasthi



मजदूर नहीं तो
हम नहीं, आप नहीं

पुल नहीं,सड़क नहीं
कारखानों  में भाप नहीं

घर नहीं, नगर नहीं
विकास का कोई माप नहीं

मज़बूरी नहीं,लाचारी नहीं
गरीबी का  ये सांप नहीं

मेहनत नहीं, मजदूरी नहीं
आराम का हिसाब नहीं

कारखाने नहीं, उद्योग नहीं
पेट की ऐसी  आग नहीं

कपडे नहीं, खाना नहीं
रहने को निवास नहीं

कुएं नहीं , नहर नहीं
बुझती कभी प्यास नहीं

मजदूर नहीं तो कुछ नहीं
हम नहीं , आप नहीं||


Himadri Tung Shring se prabuddh shuddh bharti- Jayshankar Prasad

हिमाद्रि तुंग शृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती

अर्मत्य वीर पुत्र हो
दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है
बढ़े चलो बढ़े चलो,.,!!



असंख्य कीर्ति रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के
रुको न शूर साहसी

अराति सैन्य सिंधु में
सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो
बढ़े चलो बढ़े चलो,.,!!

Ho Gayi hai peer parvat se pighalani chahiye- Hindi Kavita by Dushyant Kumar


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,.,!!

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए,.,!!

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए,.,!!

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए,.,!!

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए,.,!!





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Ho gayi hai peer parvat si pighalni chahiye
Is himalaya se koi ganga nikalni chahiye

Aaj yah deewar pardon ki tarah hilne lagi
Shart lekin thi ke ye buniyad hilni chahiye

Har sadak par , har gali me, har nagar har gano me
Haath lahrate huye har lash chalni chahiye

Sirf Hangama khada karna mera maksad nahi
Sari koshish hai ke ye soorat badalani chahiye

Mere seene me nahi to tere seene me hi sahi
Ho kahi bhi aag lekin aag jalni chahiye

Mat Kaho Aakash me kohra ghana hai- Hindi Kavita by Dushyant Kumar


मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है,.,!!

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है,.,!!

हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है,.,!!

दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है,.,!!





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Mat kaho aakash me kohara ghana hai
Yah kisi ki vyaktigat aalochana hai 

Surya hamne bhi nahi dekha subah ka
Kya karo ge surya ka kya dekhna hai

Ho gayi har ghat par puri vyavastha
shauk se doobe jise bhi doobna hai

Dosto ab manch par suvidha nahi
Aaj kal nepathaya me sambhavna hai

14 September Hindi Divas - Garv se hindi boliye sharm se nahi


आज हिंदी दिवस है १४ सितम्बर
पर आपने कभी ध्यान दिया है के हिंदी  इस्तेमाल कितना काम होता जा रहा है , बचपन से अब में कितना अंतर है
अब तो माँ भी अपने बच्चे को अंग्रेजी में ही खाना खिलाती है , सुसु करवाती है , दूर भगाती है , पास बुलाती है
किसी रेस्टॉरेंट में जाइये वहां देखिये , एक सरकारी ऑफिस छोड़ के लगभग सभी जगहों से हिंदी का इस्तेमाल कम हो रहा है

imgsource

स्कूलों में हिंदी बोलने पे फाइन लगता है,.,.,अरे अच्छी बात है अंग्रेजी सिखाओ , फ्रेंच सिखाओ लेकिन लड़के को ये तो पता हो के कैशियर को कोषाध्यक्ष  बोलते हैं
अभी आप किसी आज के लड़के से पूछो किंकर्तव्यविमूढ़ कौन सी स्थिति होती हैं ;) ,., फिर पता चले गा के हिंदी की स्थिति क्या है
अरे इस देश का नाम हिंदुस्तान है , यार ये हिंदी भाषा का देश है। क्या हम हिंदी का स्तर ऐसा नहीं कर सकते के बाहर के लोग हिंदी सीखे , ये इसलिए है क्यों की हम खुद हिंदी को ओछी नजरों से देखते हैं




अब तो यार गूगल एडसेंस ने भी हिंदी को सपोर्ट करना शुरू कर दिया है, ट्विटर ने हिंदी हैशटैग सपोर्ट करना शुरू कर दिया ;)  , हमारी तो फिर भी मातृभाषा है

कोशिश करके देखिये इतनी भी मुश्किल नहीं है हिंदी और हिंदी का इस्तेमाल और वो भी गर्व के साथ :) :)

Sarfaroshi ki tamanna ab hamare dil me hai -Ram Prasad Bishmil

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है




करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचः ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या बिसमिले दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूचः-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में हो जुनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोलः सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है




हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्क़िलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लढ़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

Tujhse door bhi hu aur pass bhi, Kehne ko khush bhi hu aur udaas bhi- Hindi Kavita By Ashish Awasthi



तुझसे दूर भी हूँ मैं  और पास भी 
कहने को खुश भी हूँ मैं और उदास भी ,.,

न जाने क्या हो रहा है इन दिनों 
नफरत भी तू ही है और प्यारा एहसास भी ,.,

कब तक मैं फिरता रहूँ इस रेगिस्तान में 
कड़कती धुप भी तू है और मन की प्यास भी ,.,






सब भूल कर तुझे अपना तो बना लूँ मैं 
पर दुश्मन भी तू है और खास भी ,.,

जितना सोचूं उतनी नफरत , जितना भूलूँ उतना प्यार 
बीता हुआ कल भी तू है , आगे का कयास भी ,.,



किस मर्ज की ,किस हक़ीम से क्या दवा लूँ ?
दवा भी तू , दुआ भी तू और आने वाली सांस भी ,.,

कौन आये ग अब उन दरवाजों के पीछे देखने मुझे 
मैं तेरे शहर से काफी दूर भी हूँ और पास भी ,.,!!!!

                                                                   -आशीष अवस्थी 


Tujhse door bhi hun aur pass bhi
Kehne ko khush bhi hun aur udaas bhi

Na jaane kya ho rha hai in dino
Nafrat bhi tu hai aur pyara ehsaas bhi

Kab tak firta rahu is registan me
Kadakti dhoop bhi tu aur man ki pyaas bhi

Sab kuchh bhool kar tujhe apna to bana lun main
Par dushman bhi tu hai aur khaas bhi

Jitna sochun utani nafrat, jitna bhoolun utna pyar
Beeta hua kal bhi tu hai aur aage ka kayas bhi

Kis marj ki , kis hakeem se kya dawa lun ?
Dawa bhi tu , dua bhi tu aur aane wali saans bhi 

Kaun aaye ga ab un darwajon ke peechhe dekhne mujhe
Main tere shehar se kaafi door bhi hun aur paas bhi 

                                                                        -Ashish Awasthi

Radha Krishna- विचलित से कृष्ण ,प्रसन्नचित सी राधा

स्वर्ग में विचरण करते हुए
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए

विचलित से कृष्ण ,प्रसन्नचित सी राधा…

कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई
इससे पहले कृष्ण कुछ कहते राधा बोल उठी

कैसे हो द्वारकाधीश ?





जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन
कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया
फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया

और बोले राधा से ………
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!

आओ बैठते है ….
कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो

सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी

बोली राधा ,मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे
जो तुम याद आते

इन आँखों में सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे

प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको ?

कुछ कडवे सच ,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?

कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए
यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की
और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?

एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर
भरोसा कर लिया और
दसों उँगलियों पर चलने वाळी
बांसुरी को भूल गए ?

Bhagwan Shri Krshna with Sudarshana Chakra

कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ….
जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली
क्या क्या रंग दिखाने लगी
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी

कान्हा और द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है बताऊँ
कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता

युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है
युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं
और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं
कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को दुःख नहीं देता

आप तो कई कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो

पर आपने क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया
सेना तो आपकी प्रजा थी
राजा तो पालाक होता है
उसका रक्षक होता है

आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन
आपकी प्रजा को ही मार रहा था
आपनी प्रजा को मरते देख
आपमें करूणा नहीं जगी

क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे

आज भी धरती पर जाकर देखो
अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को
ढूंढते रह जाओगे हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे

आज भी मै मानती हूँ
लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं
उनके महत्व की बात करते है

मगर धरती के लोग
युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं
प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं
गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है
पर आज भी लोग उसके समापन पर

” राधे राधे” करते है

Best Kavita- Tum Lakh chahe meri aafat me jaan rakhna- Dr. Kumar Vishwas

तुम लाख चाहे मेरी आफ़त में जान रखना
पर अपने वास्ते भी कुछ इम्तहान रखना

वो शख़्स काम का है, दो ऐब भी हैं उसमें
इक सर उठाना दूजा मुँह में ज़बान रखना






बदली सी एक लड़की से कुल शहर ख़फ़ा है
वो चाहती है पलकों पर आसमान रखना



केवल फ़क़ीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती में जीना और खुश सारा जहान रखना.


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"Tum Laakh Chahe Meri Aafat Mein Jaan Rakhna
Par Apne Waaste Bhi Kuchh Imthaan Rakhna

Wo Shakhs Kaam Ka Hai, Do Aib Bhi Hain Usmein
Ik Sar Uthaana Duja Moonh Mein Zabaan Rakhna

Badli Si Ek Ladki Se Kul Shahar Khafa Hai
Wo Chahati Hai Palkon Par Aasmaan Rakhna

Kewal Faqeeron Ko Hai Ye Kaamyaabi Haasil
Masti Mein Jeena Aur Khush Sara Jahaan Rakhnaa.

Madhushala Ki Chuninda panktiyan- Harivansh Rai Bachhan

Read More about bachhan sahab-http://en.wikipedia.org/wiki/Harivansh_Rai_Bachchan

Madhushala (The house of wine) bachhan ji ki sarvadhiak prashiddh aur uttam rachnao me se ek hai
To aanand lijiye Madhushala ki kuch chuninda panktiyo ka

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला,.,!!!


मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला,.,!!!


हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला,.,!!!


एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला,.,!!!






मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला,.,!!!



कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला,.,,.!!!


और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला,.,.,!!!


मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला,.,!!


मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला,.,!!!


अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला ,.,!!!

Rui ka gadda bech kar, Maine ek dari khareed li (रुई का गद्दा बेच कर मैंने, इक दरी खरीद ली)

Rui ka gadda bech kar, Maine ek dari khareed li (रुई का गद्दा बेच कर मैंने, इक दरी खरीद ली)


रुई का गद्दा बेच कर मैंने, इक दरी खरीद ली,
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने, और ख़ुशी खरीद ली !!

सबने ख़रीदा सोना मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी डोरी ख़रीद ली !!



मेरी एक खवाहिश मुझसे ,मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने, अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली !!


इस ज़माने से सौदा कर, एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और, शामें खरीद ली !!


शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से और कुछ कम किये,
फ़िर सस्ते में ही "सुकून-ए-ज़िंदगी" खरीद ली,.,!!!


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Rui ka gaddda bech kar maine , ek dari khreed li
Khwaishon ko kuchh kam kiya maine aur khushi khareed li

Sabne khreeda sona maine ek sui khareed li
Sapno ko bunne jitni dori khareed li

Meri ek khwaish mujhse , mere dost ne khareed li
Fir uski hansi se maine, apni kuchh ur khushi khareed li

Is jamane se sauda kar , ek jindagi khareed li
Dino ko becha aur shame khareed li

Shauk-e-jindagi kamtar se aur kuchh kam kiye
Fir saste me hi sukoon-e-jindagi khareed li

Mehfil-Most popular poetry of Dr. Kumar Vishwas - O Kalpvraksh ki sonjuhi

ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही !
ओ अमलतास की अमलकली!
धरती के आतप से जलते..
मन पर छाई निर्मल बदली..!
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा |
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा ||
तुम कल्पवृक्ष का फूल और मैं धरती का अदना गायक ,
तुम जीवन के उपभोग योग्य ,मैं नहीं स्वयं अपने लायक ,
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे ! तुम साम-गान सी पावन हो ,
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी ,बिजुरी सी तुम मनभावन हो,
इसलिये , व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा |
तुम मुझको करना माफ ,तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||



तुम जिस शय्या पर शयन करो ,वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो ,
जिस आँगन की हो मौलश्री ,वह आँगन क्या वृन्दावन हो ,
जिन अधरों का चुम्बन पाओ ,वे अधर नहीं गंगातट हों ,
जिसकी छाया बन साथ रहो ,वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो ,
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा |
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||




मै तुमको चाँद सितारों का सौंपू उपहार भला कैसे ?
मैं यायावर बंजारा साधूँ सुर संसार भला कैसे ?
मै जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे !
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ दो पल प्यार भला कैसे ?
इसलिये , विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा |
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा ||
ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही......!


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O kalpvraksh ki sonjuhi
O amaltash ki amalkali

Dharti ke aatap se jalti
man par chhayi nirmal badli

Main tumko madhusugandh yukt sansar nahi de pau ga
Tum mujhko karna maaf tumhe main pyar nahi de pau ga

Tum kalpvraksh ka fool aur main dharti ka adna gayak
Tum dharti ke upbhog yogya mai swayam nahi apne layak

Tum nahi adhuri ghajal shubhe , tum sham gaan si pavan ho
Him shikahron pe sahsa kaundhim bijuri si manbhavan ho

Isliye vyarth shabdon wala vyapaar nahin de pau ga
Tum mujhko karna maaf tumhe main pyar nahin de pau ga

Tum jis shayya par shayan karo, wah chheer sindhu si pavan ho
Jis aangan ki ho maul shri, wah aangan kya vrindavan ho

Jin adharon ka chumban pao wo adhar nahin ganga tat ho
Jiski chhaya ban saath raho wah vyakti nahi vanshivat ho

Par main vat jaisa saghan chhanh vistar nahin de pau ga
Tum mujhko karna maaf tumhe main pyar nahin de pau ga

Main tumko chand sitaron ka saunpu uphar bhala kaise
Main yayawar banjara sandhu sur sansar bhala kaise

Main jeevan ke prashano se naata tod tumhare saath shubhe
Barood bichhi dharti par kar lun do pal pyar bhala kaise

Isliye vivash har aansoo ko satkar nahin de pau ga
Tum mujhko karna maaf tumhe main pyar nahin de pau ga

Kumar Vishwas Winter Special- Yaad tak jam ke baith jati hai

Kumar Vishwas Winter Special- Yaad tak jam ke baith jati hai
Enjoy Winter.....!
"धूंप भी खुल के कुछ नहीं कहती ,
रात ढलती नहीं थम जाती है ,
सर्द मौसम की एक दिक्कत है ,
याद तक जम के बैठ जाती है....,.!!!!




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Dhoop bhi khul ke kuchh nahin kahti
Raat dhalti nahin tham jaati hai
Sard mausham ki ek dikkat hai
Yaad tak jam ke baith jati hai

Mehfil Mehfil Muskana to padta hai - Best Kavita (Ghazal) of Kumar Vishwas




महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है.,.,
दिल ही दिल में खुद को, समझाना तो पड़ता है.,.,!!

उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना.,.,
रस्ते में ये मैखाना तो पड़ता है.,.,!!!!!

तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए,.,
इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता हैं,.,!!!



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Mehfil Mehfil muskana to padta hai
Dil hi dil me khod ko, Samjhana to padta hai

Unki aankhon se hokar dil tak jaana
Raste me ye maikhana to padta hai

Tumko paane ki chahat me khatam huye
Ishq ke itna jurmana to padta hai

Mai Shunya hu - Kavita by Ashish Awasthi

Mai Shunya hu - Kavita by Ashish Awasthi
ना खोया है कुछ, न कुछ पाया है ,.,
एक शुन्य हूँ मै .,.,
जिसका कोई अस्तित्व ही नही है अकेले में.,
पर मुझे इस पर गम नही ,
क्यों ?
कि दुनिया का आधार हूँ .,.,
मै शुन्य हूँ .,. 




                                       -आशीष अवस्थी

Kavita kya hai ? Rachna kya hai ? - Ashish Awasthi

Kavita kya hai ? Rachna kya hai ? - Ashish Awasthi
रचना में क्या होता है,
             शब्दों का मेल.,
कविता क्या है,
           भावनाओ की मौज.,.
तुकबंदी से गीत बनते है जो ,
          शायद वही गाते है लोग.,.,
पर यहाँ तो अतुकांत कविता है,
        बिलकुल ज़िन्दगी की तरह.,.,
जिसका कोई न ओर है न छोर ,
यही राज़ है ख़ुशी का की हर चीज हो जाये 'अतुकांत '.,.,  




                                                                                    - आशीष अवस्थी

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Rachna me kya hota hai ?
Shabdon ka mel

Kavita kya hai ?
Bhavanaon ki mauj

Tukbandi se geet bante hain jo
Sayad wahi gaate hain log

Par yahan to atukant kavita hai
Bilkul jindagi ki tarah

Jiska koi na or hai na chhor
Yahi raaj hai khushi ka ki har cheej ho jaye Atukant

Tum agar nahi aayi, geet ga na paaun ga - Best Hindi Kavita by Kumar Vishwas


तुम अगर नहीं आई, गीत गा न पाउँगा..
सांस साथ छोड़ देगी, सुर सजा न पाउँगा..
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बांसुरी चली आओ होठ का निमंत्रण है.



तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से, दूर राधिका सी है.
दूरियां समझती है, दर्द कैसे सहना है,
आँख लाख चाहे पर, होठ को न कहना है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है.


तुम अलग हुई मुझसे, सांस की खताओं से
खुद की दलीलों से, वक़्त की सजाओं से,
रात की उदासी को आंसुओं ने झेला है,
कुछ गलत न कर बैठे, मन बहोत अकेला है.
कंचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है.




बांसुरी चली आओ चोट का निमंत्रण है.

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Tum agar nahi aayi, geet ga na pau ga
Saans saath chhod degi, sur saja na pau ga
Taan bhavna ki hai, shabd shabd darpan hai
Baansuri chali aao honth ka nimantran hai


Tum bina hatheli ki har lakeer pyaasi hai
Teer paar kanha se door radhika si hai
Dooriyan samjhati hain,dard kaise sahna hai
Aankh lakh chahe par,honth ko na kahna hai
Aushadi chali aao chot ka nimantran hai


Tum alag hui mujhse, saans ki khataon se
Khud ki daleelon se , waqt ki sajaon se
Raat ki udaasi ko aansuon ne jhela hai
Kuchh galat na kar baithe, man bahut akela hai
Kanchani kasauti ko , khot ka nimantran hai


Baansuri chali aao chot ka nimantran hai